Sunday, February 21, 2010

वो कौम न मिटने पायेगी

वो कौम न मिटने पायेगी
ठोकर लगने पर हर बार , उठती जाएगी

युग युग से लगे है यहाँ पर देवों के दरबार
इस आँगन में राम थे खेले , खेले कृष्ण कुमार , झूम उठे अवतार

गंगा को धरती पर लाने भागीरथ थे आये
ध्रुव की निष्ठा देख के भगवन पैदल दौड़े आये , साधक आते जायें

विपदा में जो देवों की थी अभयदायिनी त्राता ही
चंडी जिनकी कुलदेवी हो बल तो उसमे आता ही , जय दुर्गा माता की

बैरी से बदला लेने जो हंस हंस शीश चढाते
शीश कटे धड से अलबेले बढ़-बढ़ दांव लगाते , मरकर जीते जाते

जिनके कुल की कुल ललनाएं कुल का मान बढाती
अपने कुल की लाज बचाने लपटों में जल जाती , यश अपयश समझाती

मरण को मंगलमय अवसर गिन विधि को हाथ दिखाने
कर केसरिया पिए कसूँबा जाते धूम मचाने , मौत को पाठ पढ़ाने

कितने मंदिर कितने तीरथ देते यही गवाही
गठजोड़ों को काट चले थे बजती रही शहनाई , सतियाँ स्वर्ग सिधाई

कष्टों में जिस कौम के बन्दे जंगल -जंगल छानेंगे
भोग एश्वर्य आदि की मनुहारें ना मानेंगे , घर-घर दीप जलाएंगे

स्व. श्री तन सिंह जी द्वारा रचित :७ जून 1960

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