Monday, August 9, 2010

हमारा गाना: हक्का बक्का हो हो !!!

महान भारत देश को इस तरह नर्वस होते कभी नहीं देखा। तब भी नहीं, जब हम सोते रहे और करगिल में दुश्मन घुस आए। तब भी नहीं, जब अकाल पड़ा, सुनामी आई या देश के सबसे बड़े नेता मार डाले गए। जो आज तक नहीं हुआ, वह खेल-खेल में हो गया। भारत की इज्जत खतरे में पड़ गई है। इन दिनों दिल्ली में मिलकर माथा पीटने का जमाना आ गया है। पीएम-सीएम से लेकर एक अदने बाबू और बेलदार तक सभी की रातों की नींद इस खौफ से हवा हो गई है, कि क्या होगा अगर कॉमनवेल्थ गेम्स तक तैयारी पूरी नहीं हुई तो? पूरा शहर खुदा पड़ा है और इसे लेकर मीडिया ने इतनी कांय-कांय कर रखी है, कि बहुत से लोग हायपरटेंशन के शिकार हो गए हैं। कैसे बचेगी देश की लाज, जब सैकड़ों प्लेयर्स, डेलिगेट्स और लाखों टूरिस्ट दिल्ली की धूल, कीचड़ और बदइंतजामी में आ फंसेंगे? गेम्स होंगे भी या नहीं?


अपने लेवल पर (जो कि इतिहास के सबसे बड़े खेल आयोजन के हिसाब से बहुत ही छोटा लेवल है) मैंने सोचा कि देश को अभी से एक इमरजेंसी प्लान तैयार कर लेना चाहिए। एक ऐसा प्लान, जो हमारे नेगेटिव को पॉजिटिव में, कमजोरी को ताकत में और खामी को खूबसूरती में तब्दील कर दे। इस कोशिश में मैंने एक नहीं, छह-छह प्लान तलाश कर डाले, क्योंकि पता नहीं किस मौके पर कौन-सी दवा काम कर जाए। सरकार और जनता जनार्दन की चॉइस के लिए वे सभी यहां पेश हैं-


प्लान वन: एडवेंचर सिटी :


दिल्ली को एडवेंचर सिटी का नाम दे दिया जाए। गेम्स का नारा हो - वेलकम टु अ न्यू एडवेंचर। यहां आने वालों को लगे कि उनके विजिट को एडवेंचर में बदलने के लिए दिल्ली को खाई-खंदक और नाले में बदल दिया गया है। अधूरे स्टेडियम और फ्लाईओवर भी उसी एडवेंचर का हिस्सा हैं। यह मामूली दौड़-भाग के गेम्स से कहीं आगे एक रिएलिटी शो होने जा रहा है, जिसमें हिस्सेदारी कभी न भूलने वाला अनुभव साबित होगी।


प्लान टू: पुरानी सिविलाइजेशन की खोज :


हम भारत की सभ्यता सबसे पुरानी होने का दावा करते हैं। अब तक इसका सबूत हम नहीं दिखा सके हैं, लेकिन अब हम दुनिया को बताएं कि दरअसल दिल्ली को इसलिए खोदा और उजाड़ा जा रहा है, क्योंकि इसके नीचे एक लाख साल पुराना शहर दबा हुआ है। जहां पुराने स्मारक निकलते हैं, उन जगहों को सीमेंट और लोहे से ढंका नहीं जा सकता। हम टूरिस्टों को ज्यादा-से-ज्यादा वक्त तक दिल्ली में रहने और डॉलर लुटाने को उकसाएं, यह कहकर कि वे एक नई सिविलाइजेशन की खोज के पहले दर्शक बन सकते हैं, जो क्या पता सिंधु घाटी और मैसोपोटामिया से ज्यादा महान हो।


प्लान थ्री: तरक्की की मिसाल :


दिल्ली में जो काम चल रहा है, वह बेमिसाल है। इंडिया में आज तक कहीं और कभी इस लेवल का डिवेलपमेंट वर्क नहीं चला। इससे पता चलता है, कि हमारे इरादे कितने बुलंद हैं। हम विदेशियों को यह काम होता हुआ ही दिखाएं और उन्हें यह कहकर इंप्रेस कर दें कि हम तो इसी पैमाने से बीस साल तक खुद को बनाते जाने वाले हैं। शंघाई में जो भी जाता था, ऐसा ही काम होता देखकर घबराया हुआ लौटता था। दिल्ली से भी विदेशी डरेंगे। दरअसल वे पहले से डरे हुए हैं। उनमें किसी की ग्रोथ रेट इंडिया जितनी नहीं है। भारत उन पर राज करने वाला है, यह बताने का मौका मत चूकिए।


प्लान फोर: हक्का बक्का हो हो :


याद है शकीरा का वक्का वक्का? फीफा से ज्यादा तो उस डांसर ने दुनिया की फूंक सरका दी थी। हम उससे भी बड़े लेवल का गाना-बजाना, पार्टीबाजी करें कि विदेशियों को इधर-उधर देखने की फुर्सत ही नहीं मिले। मिले भी तो वे उसे तवज्जो देने की हालत में न रहें। उन्हें रासरंग में ऐसे डूबो दें जैसे हमारे राजे-महाराजे खुद के लिए किया करते थे। इतना कि घर लौटने पर इंडिया के बारे में बुरा कहना तो क्या सोचना भी उन्हें बेवफाई लगे। वक्का वक्का की जगह हक्का बक्का-हो हो करेंगे। लिरिक्स विदेशियों की समझ में थोड़े ही आने वाले हैं।


प्लान फाइव : तुर्कमान गेट फॉर्म्युला :


पुरानी दिल्ली के घोड़े-खच्चरों की तो छुट्टी हो गई है, लेकिन उनका वह नजरपट्टा हमारे काम आ सकता है, जिससे उन्हें इधर-उधर दिखना बंद हो जाता था। हर विदेशी मेहमान को बेहद सुंदर बालाएं टीका लगाएं और एक खास टोपी पहनाएं, जिसे पहनने के बाद ऐन सामने की चीज के अलावा कुछ न दिखता हो। उन्हें बताया जाए कि यह भारत की परंपरागत टोपी है, जो हर मेहमान को हमेशा पहने रहनी होती है। इसे नहीं पहनना मेजबान की बेइज्जती माना जाएगा। विदेशी लोग लोकल रिवाजों को लेकर काफी सेंसिटिव होते हैं।


प्लान सिक्स : हम तो ऐसे ही :


हमें कोई सफाई देने की जरूरत ही क्या है। वेनिस में सड़कों की जगह नहरें बहती हैं, पीसा में एक मीनार है, जो एक तरफ को लटकी हुई है... क्या वहां के लोग उस पर शर्मिंदा होकर सफाई देते रहते हैं? हम यह दिखाएं कि दिल्ली तो जी ऐसी ही है, आपको आना हो तो आओ। हम उन्हें दिखाने के लिए ये तमाम जतन कर रहे हैं, इसमें कौन से गौरव वाली बात है। हमें जब जिस चीज की जरूरत होगी, अपने हिसाब से और अपनी स्पीड से बनाएंगे।


और सभी प्लानों का बाप :


हम सभी एक अरब भारतीय एक दिन तयशुदा वक्त पर अपनी-अपनी जगह पर खड़े हों, हाथों को जोड़ लें और आसमान की ओर सिर उठाकर एक साथ बोलें: हे भगवान, आपने जो कृपा.....

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